कोंडागांव/फरसगांव :~ ___ यह सिर्फ एक गरीब परिवार की कहानी नहीं, बल्कि उस सरकारी तंत्र की उदासीनता का जीता-जागता उदाहरण है, जो जरूरतमंदों की मदद करने में नाकाम है। फरसगांव ब्लॉक के ग्राम पंचायत सोड़मा की 16 वर्षीय गणेश्वरी मंडावी जन्म से ही पूर्ण रूप से दिव्यांग है, और उसकी विकलांगता ही उसके लिए सबसे बड़ी बाधा बन गई है। एक ऐसी बाधा, जिसके पार उसे कोई भी सरकारी मदद नहीं मिल पा रही।
*लापरवाही की दोहरी मार:–*
गणेश्वरी के पिता, जो एक स्कूल में रसोइया का काम करते हैं, बताते हैं कि पहले आफ लाइन सिस्टम के दौरान उनकी बेटी को 200 रूपए सामाजिक सुरक्षा पेंशन मिलती थी, जिससे उसके इलाज और देखभाल में थोड़ी राहत थी। लेकिन सिस्टम आनलाइन होने के चलते पिछले कई सालों से यह पेंशन बंद है। इस दौरान, उन्होंने कई बार सरपंच और सचिव से गुहार लगाई। हर बार उन्हें आश्वासन मिला, “जल्द ही सब ठीक हो जाएगा।” एक महीना बीत गया, दो महीने, फिर साल और अब सालों साल हो गए, लेकिन गणेश्वरी के लिए कुछ भी नहीं बदला।
यह सिर्फ पेंशन का मामला नहीं है। राज्य और केंद्र सरकार ने विकलांग बच्चों के लिए कई योजनाएं बनाई हैं। लेकिन गणेश्वरी को इनमें से किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल पाया है। सरपंच और सचिव ने इस बच्ची के लिए कोई प्रयास नहीं किया। न तो उन्होंने विकलांग कल्याण विभाग से संपर्क किया, न ही बच्ची के विशेष मामले को अधिकारियों तक पहुंचाया। उनकी यह बेरुखी न केवल कर्तव्य की अवहेलना है, बल्कि एक असहाय परिवार की उम्मीदों पर किया गया प्रहार भी है।
*आधार कार्ड की तकनीकी दीवार और सिस्टम की संवेदनहीनता-*
इस पूरी समस्या की जड़, जैसा कि बताया जाता है, आधार कार्ड है। गणेश्वरी की पूर्ण विकलांगता के कारण उसके फिंगरप्रिंट्स और आंखों के आइरिस (आइशैडो) की पहचान नहीं हो पा रही है। तकनीकी रूप से यह एक समस्या हो सकती है, लेकिन क्या सरकार का काम सिर्फ नियमों का पालन करना है या फिर समाधान निकालना भी?
यह सवाल उठता है कि जब एक बच्ची, जो बोल भी नहीं सकती और खुद अपना ध्यान भी नहीं रख सकती, उसे सरकार की योजनाएं इसलिए नहीं मिल पा रही हैं क्योंकि उसका आधार कार्ड नहीं बन रहा, तो क्या यह सिस्टम की विफलता नहीं है? स्थानीय प्रशासन, जिसमें सरपंच और सचिव सबसे निचले स्तर के प्रतिनिधि हैं, उन्हें ऐसे मामलों में सक्रियता दिखानी चाहिए। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि गणेश्वरी जैसे बच्चों को विशेष छूट मिले, या फिर उनके लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था की जाए।
गणेश्वरी की कहानी सिर्फ एक बच्ची की तकलीफ नहीं है, बल्कि यह एक पूरे सरकारी सिस्टम की संवेदनहीनता को दर्शाती है, जो कागजी कार्रवाई और तकनीकी खामियों के नाम पर सबसे कमजोर लोगों को उनकी बुनियादी जरूरतों से वंचित कर रहा है।
*एसडीएम ने दिया जांच का आश्वासन: ‘आवश्यक कार्रवाई करेंगे’–*
दिव्यांग गणेश्वरी मंडावी का मामला सामने आने के बाद फरसगांव एसडीएम अश्वन कुमार पुसाम ने इस पर संज्ञान लिया है। एसडीएम ने इस संवेदनशील मुद्दे पर अपनी प्रारंभिक प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्हें जनपद कार्यालय से इस बारे में जानकारी मिली है। “प्रारंभिक जांच में हमें पता चला है कि लड़की दिव्यांग है और इसी वजह से उसका फिंगरप्रिंट और आईरिस (आईशैडो) नहीं मिल पा रहा है, जिससे उसका आधार कार्ड नहीं बन पा रहा।” उन्होंने आगे कहा कि इस मामले की गहन जांच की जाएगी और उसके बाद आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।
एसडीएम का यह बयान एक उम्मीद जगाता है कि शायद अब गणेश्वरी को सरकारी योजनाओं का लाभ मिल पाएगा।
- यह देखना बाकी है कि प्रशासन की ‘आवश्यक कार्रवाई’ कितनी प्रभावी होती है और क्या यह सिर्फ एक बयान बनकर रह जाएगा या वास्तव में गणेश्वरी को उसका हक मिल पाएगा, जो उसे तीन साल से नहीं मिला है। 

 
									 
			 
			 
			